जन आस्था और विश्वास को नमन
हरिद्वार में आस्था का सैलाब उमड़ रहा है . हर कोई महाकुम्भ का सहभागी साक्षी बनने को आतुर है . इस जन आस्था और विश्वास की कोई सीमा नहीं . आमजनों से लेकर संतों -महंतों -आचार्यों- विद्वतजनों सभी का पदार्पण हरिद्वार में हो रहा है . पंडालों में भारी भीड़ श्रीमद्भागवत महापुराण , श्री राम कथा , गौ कथा ,रास लीलाएं , यज्ञ - हवन- अनुष्ठान , जप-तप , सब तरफ धर्म ही धर्म . अद्भुत अनुपम अकल्पनीय पर साकार . करोड़ों की साक्षात उपस्थति और अरबों का द्रश्य श्रव्य साधनों से जुडाव . समस्त हिन्दू समाज धर्म मय , आस्था से अनुप्राणित , विश्वास से सारोबार . ऊपर से सोने में सुहागा महाकुम्भ महापर्व के साथ श्री पुरुषोत्तम मास . जहाँ तक नज़र जाये केवल और केवल जन सैलाब . यात्रा में पाँच गुना समय शरीर थका-थका सा पर मन प्रफुलित . हरिद्वार में प्रवेश पर .... हर की पौड़ी फिर भी बहुत दूर . भागमभाग - धक्का मुकी .
त्रिवेणी संगम के साथ शहरी और ग्रामीण परिवेश का अनोखा संगम ,ना कोई जाती-पाती , ना आयु और ना लिग़ का कोई भेद . समता - संवेदना - समरसता का का अद्भुत नज़ारा . ३ पीढ़ियों का अद्भुत सहकार . कंधे पर बोझ लादे गोद में भविष्य को सम्हालता और एक हाथ से अपने वृद्ध पिता नाना दादा को सहेजता महाकुम्भ के मोह में बंधा आज का निर्मोही युवा कुछ पल के लिए ही सही पर हर पल के लिए महापर्व का महान सन्देश .
ब्रह्मकुंड में कलश से छलकी अमृत बूदों के प्रसाद से हम सभी पवित्र निर्मल हो इस आस्था से यह पहली डुबकी उसके बाद साथ ना आसके परिजनों - ईस्ट मित्रो के लिए डुबकी पे डुबकी और फिर परमधाम को प्राप्त पित्तरों को तर्पण ....सच इतनी भीड़ में भी परम शांति - शुकून . यही है - महाकुम्भ . ना कोई बुलावा ना कोई आयोजक और नाही इस बाज़ार युग में भी कोई प्रायोजक . ठाकुर की लीला हर की पौड़ी पर हर कोई हर - हर गंगे .
Sunday, April 18, 2010
Thursday, March 18, 2010
सभी की सुनता है इच्छा पूरी करता है तभी तो इच्छापूरण है !
सभी की सुनता है इच्छा पूरी करता है तभी तो इच्छापूरण है !
जबरेश्वर महादेव , लक्डेश्वर महादेव , पीर पछाड़ बालाजी सब नाम भावार्थी है , अपने आप में एक कहानी लिए है ,भक्तों के भाव का परिचायक है ! जैसे "Post Graduate Balaji" - वैसे तो बालाजी है ही "ज्ञानिनाम ग्रगन्यम" पर
चूँकि यह मंदिर अपने आस-पास के पांच महाविद्यालयों के विद्यार्थियों से भरा रहने - विशेष पूजित होने से भक्तों ने नाम धर दिया "Post Graduate Balaji" ऐसे ही भक्त श्री मूलचंद मालू के मन में मंदिर निर्माण की इच्छा हुई या आदेश हुआ ! स्वप्न में बाबा के स्वरुप का साक्षात्कार हुआ तो श्री बालाजी महाराज के श्री विग्रह ने "वरद मुद्रा में सिंहासनारुढ़" स्वरुप धारणकर भक्त की इच्छा पूरण की ! भव्य मंदिर निर्माण की इच्छा , मंदिर में विग्रह विशेष की प्रतिष्ठा की इच्छा के साथ अनेकों इच्छाएं , अनायास कहीं से लंगूर (वानर प्रजाति) का मरू प्रदेश जहाँ असंभव है आना मंदिर परिसर में स्वभाव के विपरीत आचरण करते हुए अनेकों चमत्कार करना , मंदिर परिसर में नित्यप्रति उमड़ता जन आस्था का सैलाब , मनोवांछा की डोर में बंधे इच्छा (मन्नत) के नारियल , बाबा के लगते सवामणी भोग , गठजोड़े से मंदिर की परिक्रमा करते वर-वधु और खेजड़ी (शमी-वृक्ष) के नीचे बच्चों के झडुले (मुंडन) उतरवाते लोग इच्छापूर्ति के संकेत है ! मानवीय इच्छाएं असीम है व्यक्त है अव्यक्त है , इच्छापूरण सभी की सुनता है इच्छा पूरी करता है तभी तो इच्छापूरण है !
"श्री इच्छापूरण" श्री विग्रह के प्राकट्य से पहले ही चमत्कारों की लम्बी कथा है , श्री विग्रह की प्राण-प्रतिस्ठा के होते ही भक्त परिवार द्वारा अपने एक अनन्य मित्र के संकट काटने की प्रार्थना बाबा ने उसी वक्त पूरी कर हजारों लोगों की भीड़ को अचंभित कर दिया था ! मुंबई के एक वृद्ध दम्पति अपनी पुत्र वधु की सुनी गोद से दुखी हर तरफ से निराश इच्छापूरण के दरबार में आये तो इच्छा पूरी हुई ! ऐसे अनेकों चमत्कार रोज होतें है किसी को इच्छित धन मिला , किसी को पत्नी तो किसी को पुत्र या पौत्र !
एक वाकया तो बड़ा अजीब हुवा !
मंदिर में ८ अप्रेल २००९ को पोढ्ना (शयन आरती) के बाद और भोर 3.30 बजे मंदिर द्वार खुलने के दौरान मंदिर में चोरी हो गई ! मंदिर परिसर का दक्षिणी दरवाजे का ताला तोड़कर चोर मंदिर में घुस कर शिव मंदिर के छत्र, मुकुट , आभूषण और २ हून्ड्डी चोर कर ले गए ! मंदिर प्रशासन हेरान-परेशान, पुलिस को सूचना दी गई ! खोजबीन में मंदिर परिसर के पिछवाड़े के खेतों में पानी कि कुण्ड के पास ३-४ लोगों के खोज (पद-चिन्ह ) मिले ! दोनों दान-पात्र टूटे पड़े मिले जिसमे से रूपए-पैसे निकाले हुवे थे ! चमत्कार को नमस्कार ! बाबा की लीला तब समझ आई जब चोर पकडे गए! चोर वेही व्यक्ति थे जिनसे पुलिस ने चोरी कि सुचना मिलने पर मंदिर आते वक्त हाई वे पर बेठे होने के कारण पूछताछ कि थी ! पुलिस के मंदिर आने, जरुरी कार्यवाही करने, और आसपास खोजबीन करने में, काफी समय व्यतीत होने के बावजूद बाबा ने उनकी मति भ्रमित कर कहीं जाने नहीं दिया ! इतने समय बाद भी वहीँ पकडवा दिया और सारा सामान बरामद हो गया !
रामकृष्ण सेवदा
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Wednesday, March 17, 2010
झूठ की पाठशाला
कोई नहीं जानता की दुनिया में पहला झूठ कब ? क्यों ? किसने ? किससे ? बोला ! ना ही कोई सर्वे हो सकता है की दुनियाँ में कितने लोग झूठ बोलते है ? क्यों बोलते है ? कब बोलते है ? और किससे बोलते है ? ना तो पहला झूठा तय किया जा सकता है और नाही कुल झूठे ! वैश्वीकरण के इस दौर में झूठ की इस लहलहाती फसल ( हरितक्रांति ) की प्रयोगशाला सारी दुनियाँ है तो पाठशाला भी एक ही है मोबाइल ! मोबाइल में झूट का वाइरस है ज्योंही आपके हाथ में मोबाइल आया की की वाइरस आपके अन्दर और फिर वो कब एक्टिवेट हो जाए कहा नहीं जा सकता ! इस को डिसइन्फेक्टिव करने के लिए कोई एंटीवाइरस भी इजाद नहीं हुवा है ! जब आप शहर में होते है तो नहीं होते और कभी कभी नहीं भी होते है तो भी होते है ! सिनेमा हाल में होते है पर नहीं होते मीटिंग में व्यस्त होते है ! बिस्तर में होते हुवे भी बाज़ार में होते है ! ये सब झूट हर कोई हर किसी के सामने हरदम बोलता नज़र आता है ! जितने बड़ा आदमी उसके हाथ में उतने ज्यादा मोबाईल उतनी बड़ी उसकी झूठ ! कभी-कभी तो अपनी सुनने - समझने की क्षमता पर भी संदेह होने लगता है ! इसी झूठ पर किसी ने सीरियल भी बनाया "कक्काजी कहिन" बड़ा चला था सबको अच्छा भी लगा "सबकी या यों कहें घर-घर की यही कहानी" ! सारी दुनियाँ की पाठशालाएं अभीतक बड़ी आबादी को साक्षर तक नहीं बना सकी इस अकेली पाठशाला ने सारी दूनियाँ को डॉक्टर ( विशेषज्ञ ) बना डाला फिर चाहे वो डॉक्टर हो ना हो , व्यसाई हो , बाबा हो या बाई हो झूठ तो सर चढ़कर बोलेगी ही हाथ में झूठ की पाठशाला जो है ! आप माने या ना माने झूठ तो आपको भी बोलना ही पड़ेगा यदि आपके हाथ में मोबाईल हो चाहे आजमा के देखलो ! पर ज्यादा ना लेलेना बादशाह बन बैठोगे बाकी आप जाने आपकी झूठ आपको मुबारक ! नया उसूल झूठ पे झूठ लेनी देनी ! जय झूठे बादशाह !
Tuesday, March 16, 2010
Monday, March 15, 2010
सोनिया , शीला , सुषमा से आगे कुछ दिखता है क्या ?
बड़ा हल्ला है महिला आरक्षण का पर आपको भी सोनिया , शीला , सुषमा से आगे कुछ दिखता है क्या ? केम्ब्रिज में पढ़े साम्यवादियो में वृंदा तो खुद सर्वहारा लगती है । जया पराजित नज़र आरही है । उमा , विजयाराजे पता नहीं कहाँ खो गई है ? माया तो अपनी माया में ही मस्त है , उनकी अकेली पार्टी ऐसी है जिसमे कोई महिला शाखा नाम को भी नहीं है । कोई भला परिवार जो आज की राजनीति से दूर है अपनी बहु-बेटिओं को इस व्यवसाय में भेजने को उत्सुक नज़र नहीं आता तभी तो बिना आरक्षण के विश्वविद्यालयों में लड़कियों की भागीदारी ५२ प्रतिशत तक पहुँच गई और संसद और विधान सभाओं में महिलाओं की भागीदारी २० प्रतिशत तक नहीं पहुँच पाई । शिक्षा में लड़कियों ने दिलचस्पी ली तो सरकार के सर्व शिक्षा अभियान से आगे नज़र आई और इसी कारण परिजनों ने भी पूरा सहयोग दिया । यदि बेहतर माहोल होता तो महिलाऐं भी दिलचस्पी दिखाती और परिवार में कोई अपनी बेटी या बहु को विधायक या सांसद बनाने के बारे में सोचता । जबतक हमारी सामाजिक संस्कृति नहीं बदलती ये सब ढकोसलों से ज्यादा नज़र नहीं आता । अभी तो हाल ये है की महानगरों की लोकल बसों या ट्रेनों में आरक्षित सीटों तक पर बेठे इक्का-दुक्का भले-मानस ही कभी-कभार महिलाओं के लिए अपने आप सीट छोड़ते है। जब सोनिया के नाम पर भी अडंगा लगता है तो दिखने वाले कारण और होते है और असली कुछ और । दरअसल सबको एक और इंदिरा की कल्पना से ही डर लगता है । अहम् मुद्दा विदेशी मूल हो ही नहीं सकता क्योंकि भारतीय परम्परानुसार सरनेम बदलकर गाँधी होजाने के बाद वे भारतीय संस्कार में संस्कारित होचुकी है जबकि उनके उलट भारतीय होकर भी ये संस्कार कई जगह नज़र नहीं आता ।
Saturday, March 13, 2010
शकुन तो सुन्दर है पर दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है. कभी-कभी नहीं भी पीता है
महासभा द्वारा प्रसारित परिपत्र में लम्बे अन्तराल के बाद अपने पूर्वाध्यक्षों - संरक्षकों को सम्मान दिया जाना शुभ संकेत लगता तो है पर क्या सचमुच महासभा अपने पूर्वाध्यक्षों - संरक्षकों द्वारा समाज को किये गए और निभाए गए वादों को फिर से याद करेगी ।
Tuesday, February 16, 2010
दिल एक धरमशाला
ब्लॉग लिखने की सोचते सोचते काफी अरसा हुवा कई विचार आये ! अपने आप पर , परिवार के बारे में या फिर समाज पर लिखें ! लिखें चाहे किसी के बारे में बुरा ही ज्यादा है और उसे देखना भी जरुरी है तो दिखाना भी । न दिखाने से बुराई कम नहीं हो जाती फिर सोचा आस पास कुछ तो अच्छा है ही शुरुवात अच्छे से करलें ! वैसे ऐसा नहीं है की कुछ भी अच्छा नहीं है हमारा मन , हमारी समझ , हमारी आँखें , हमारा दिल , हमारा दिमाग , हमारे आचार -विचार- व्यव्हार सब पाईरेटेड संक्रमित से है जिससे जो अच्छा है वो भी दिखाई नहीं देता सोचा इस संक्रमण से निज़ात तो अच्छे एंटी - वाइरस से ही मिल सकती है और वैचारिक संक्रमण नए विचारों से ही मिटता है ! यही सब सोचकर एक परिवार के बारे में बताना ठीक समझा जिसमें समर्थ पर संस्कारवान पिता , कृपालु अन्नपूर्णा माँ , लीक से हटकर लीक पे चलने वाला आज्ञाकारी बेटा और घर के दायरे में सिकुड़ी रहकर भी दीन दुनिया में दीन नहीं सामर्थ्य की पहचान बेटियाँ शायद आज के समाज का अजूबा पर यही सच है । अच्छा प्रारब्ध या बुजुर्गों की पुण्याई जो भी हो है एक आदर्श परिवार । इस परिवार का बसेरा एक मंदिर है जहाँ अखंड भंडारा चलता है तो निरंतर गऊ सेवा भी , पक्षियों के चुग्गे-पानी की व्यवस्था भी है तो जरुरतमंदो की फ़िक्र भी । इतनी बड़ी कोठी है पर किसी का अपना एक कमरा भी नहीं फिर भी किसी के चेहरे पर कोई शिकन नहीं । घर धर्मशाला तो नहीं पर परिवार के हर सदस्य का दिल एक धरमशाला जरुर है जिसमें सभी के लिए स्थान है , मान है , सम्मान है क्योंकि जीवन का ज्ञान है-अपनत्व का भान है ।
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